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ज्वर / भूपिन्दर बराड़

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किवाड़ों और पिछवाड़ों में जमी धूल को
गलियों की धूल से मिलाती
सूखी हवा चलती है शहर में

धूल जमती है दीवारों की दरारों में
खाटों पर बिखरी नींद में
खाली मटकों में
चूल्हों में
पसीने से निचुड़ते इस शहर में
धूल गिरती है लगातार

मकानों की छतों को छूता हुआ
सूरज जलता है आगबबूला
बेरहम आग गिरती है गलियों में
दीवारों से जिस्म घिसटते साये जिसमे
होते हैं राख
राख होते हैं पेड़
धुआं छोड़ते हुए
पीलिया छाता है पत्तों पर
खाली बर्तनों में ज्वर उबलता है

ज्वर रेंगता है
पुरानी पोथियों के पीले पन्नों में
फैलता है शहर के ज़र्द चेहरों पर
शराबख़ानों में उमड़ती पीली कै बनकर
ज्वर उफनता है दिनों और वर्षों में

ज्वर जमता है
बच्चों के छलनी फेफड़ों में खांसी बनकर
माँ के सूखे स्तनों पर टिके
उनके होठों को जकड लेता है
होटों पर जमी पपड़ी से
भाप बन उड़ता है ज्वर
सूखी हवा में धूल के साथ

धूल जमती है प्रवासी पक्षियों कि आँखों में
स्कूल जाते बच्चों के पीठ पर
कमेटी के सूखे नलों तले
उनकी खाली हथेलिओं पर

धूल पुराने अख़बारों के ढेरों पर
अपनी फटी उँगलियों से खोलकर
उनके पड़ती बूढ़ों के बालों में
धूल

बहुत कुछ धूल में मिला दिया तुमने मेरे शहर
धूल में मिलाया मेरा पुराना स्कूल
पत्थर किया मेरे बचपन के दोस्तों को
उन्हें धूल किया धीरे धीरे सड़कों की

मेरे सारे शब्द भस्म कर डाले तुमने
धब्बों में बदल डालीं औरतें जिन्हें मैंने प्यार किया
तुम्हारे ज्वर के खारे तेजाब में
गर्क होते हैं शरीर
तुम उन्हें गुमनामी में धकेल देते हो
गर्भपात के गंदे खून की तरह

क्या तुम पहचान सकते हो अपनी संतान ?
देख सकते हो उन्हें
नुस्खे और खाली शीशियाँ जेब में ठूंसे
खून उगलते हुए
कूड़े के ढेरों पर गिरकर
एक एक लुप्त होते हुए?

समय के मूंह पर फड़फड़ाता
एक गन्दा चिथड़ा हो तुम -
तुम नहीं दोगे कोई जवाब!

ल्यूकीमिया हो गया है तुम्हे -
तुम्हारी जिस करख्त जुबान को
भूल गया था मैं
तुम्हारे पास लौट
उसी में तुमसे कहता हूँ -
तुम मर रहे हो

मैंने ढोया तुम्हे नफरत में अपने कन्धों पर
मैं जो तुमसे बहुत प्यार करता था कभी