ऋृतु राज बसंत / रामफल चहल
छः ऋृतुओं का राजा आग्या ले कै आया खुशियां भारी
पेड़ां पै नई कोंपल फूटी खिल उठी अब क्यारी-क्यारी
तितली नाचै भौंरे गूंजै कोयल बाग म्हं शोर मचारी
गांव की छोहरी कटृठी होकै गीत बसंत के गा रही
आम के ऊपर बौर आ लिया आडू भी मुस्काया सै
बेर और अमरूद पाकग्ये अनार भी पक्या पकाया सै
बुढयां नै भी बुक्कल खोली जाड़ा भी नरमाया सै
छोर्यां नै होली का डण्डा गौरे बीच जमाया सै
छोहरी रात नै गौरे के म्हां कट्ठी होकै नाच्च्ण लागी
नई बोहड़िया फौजी पति के खत न हट हट बांचण लागी
बुढ़िया भी गौरे म्ह आकै अपणे जोश न जांचण लागी
पर याणे पति की गौरी इब बी साथ जाण तै नाट्टण लागी
गाजर मूली खत्म हुई इब लागे सै हम छोलिए खावण
हाली भी घरआली खातर नई टूम इब गया सै ल्यावण
मस्ती म्हं सुस्ती नै भूली फौजण भी इब लागी गावण
परदेस गए बालम की याद म्हं हिचकी सी लागी आवण
गोरी गोरयां म्हं दलकारी मस्ती चारूं ओर न छा रही
सास बहू नै न्यूं समझारी देख बुढ़िया भी नहीं शरमा रही
कट्ठी होकै गावैं सारी ज्यूं कान्हा संग रास रचा रही
कोए पति तै फरमाइस लगारी नई नई तीऊल मंगावै सारी
छः ऋृतुओं का राजा आग्या ले कै आया खुशियां भारी