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बेटियां-1 / सुधा उपाध्याय

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बेटियां पतंग सी कई रूप रंग धर लेती हैं...
बेटियां कई रिश्तों को एक साथ जी लेती हैं
कहीं बंधती हैं तो कहीं से छूटने लगती हैं
कट कट कर गिरती हैं दूसरों के आँगन में
लोग दौड़ते हैं हसरत से लूटने पतंग
जितनी डोर खींचे उतनी पींग भर लेती हैं बेटियां