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घुड़दौड़ / प्रताप सहगल

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यह जानते हुए भी
कि जीवन होता है समुद्र में भी
एक देश बम फोड़ता है
समुद्र में ही
और जीवन को पेड़ बनने से रोक देता है।
यह जानते हुए भी
कि मरुस्थल का मिज़ाज बेहद गरम होता है
फोड़ता है बम
कोई और देश
मरुस्थल में ही
और गरम हवाएँ गैस चैंबर बन जाती हैं।
फोड़ता है बम
फिर कोई देश
और मेरे बच्चों की आँखों से
तेज़ाब रिसने लगता है
भट्ठी की धौंकनी बन जाती है
पड़ोस की अधेड़ महिला की साँस
बारूदी गंध में बदल जाती है
प्रेमिका की साँसों की महक
तमाम दूसरे-दूसरे देशों के अध्यक्ष
समवेत स्वर में रंडी-राग गाते हैं
सुनता हूँ
तो कोई ताज्जुब नहीं होता
ताज्जुब होता है तो तब
जब देखता हूँ
कि मेरा देश भी रेस का घोड़ा बन गया है।