भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेष समय इतना करना / मानोशी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 28 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem>...' के साथ नया पन्ना बनाया)
शेष समय इतना करना...
सपनों का आकाश बड़ा था,
आँखों मुक्ताहार जड़ा था,
चुन-चुन मोती बड़े जतन से
संग-संग हाथों महल गढ़ा था,
स्वप्न नहीं अब एक कहानी
बन मेरी आंखों झरना।
शेष समय इतना करना।
एक स्वप्न था, अंक तुम्हारे
अपना सर रख कर सो जाऊँ,
मांग सितारे, माथे सूरज
पहन जगत में मैं इतराऊँ,
और नहीं तो उस अंतिम क्षण
अपने अश्रु मांग भरना।
शेष समय इतना करना।
जितना हम संग राह चले हैं,
सुख-दुख, सपने संग पले हैं,
बाधाओं, झंझावातों से
हाथ पकड़ कर हम निकले हैं,
अब एकल पथ जाना मुझको
तुम ही मेरा भय हरना।
शेष समय इतना करना।