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पोताक अट्ठहास / कालीकान्त झा ‘बूच’

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पोता -
खेत टी खरिहान टी
आंगन टी दलान टी
बाबा आब अहींक कानमे,
टिटही टहकै टी टी टी।।

बाबा -
प्याली पी भरि चुक्का पी,
घट घट पी सूरूक्का पी,
रौ कुलबोरन गाम घिनौले,
लाते, जुत्ता, मुक्का पी।।

पोता -
लत्ती कू बा झब्बा कू,
अब्बा कू बा बब्बा कू,
आगाँ पाछाँ डोरा डोरिमे
डोलए दू-दू डिब्बा कू।।

बाबा -
जऽर छू जमौरा छू,
नीपल पोतल दौरा छू,
मुतिते घऽरक सीरा चढ़ले,
हगिते तुलसी चौड़ा छू ।।

पोता -
लोक कहैए बाटोपर सँ,
टीली लीली फट्ट औ
भेल अहाँके खाटोपर
उतरब दुरू घट्ट औ

आब अहाँसँ डऽर कथी केल
कतबो हुआ हुआ भूकू
हुआ-हुआ की - की हुआ,
मांगय विधकरी नूआ,
मैया-धीया साड़ी चाही
पुरहितकेँ धोती धूआ
काँच बाँसक नऽव पालकी आबए चारि कहरिया जू,
काशी...।

बाबा -
कूथि-कूथि कठगील उगै छी,
देखे टन दऽ चलि जेबे
तोरे हम बरखी कऽ देबौ
हमर श्राद्ध तोँ की करबैं
सभ अपना नेनाकेँ बरजू चेता दैत छी औ बाबू
जऽर छू... ।।