Last modified on 8 अक्टूबर 2013, at 17:22

दुख मैं बीतैं जिन्दगी न्यूं दिन रात दुखिया की / लखमीचंद

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 8 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लखमीचंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryanaviR...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुख मैं बीतैं जिन्दगी न्यूं दिन रात दुखिया की
के बूझैगी रहणदयो बस बात दुखिया की

के बूझो छाती मैं घा सै बोलतेए हिरदा पाट्या जा सै
और दूसरा नां सै दुख मैं साथ दुखिया की

मेरा ना किसे चीज मैं मोह सै, कुछ भी नहीं जिगर मैं धो सै
टोटे में के इज्जत हो सै, के जात दुखिया की

या होणी अपणे बळ हो सै, बात मैं सब तरियां छळ हो सै
दुख मैं निष्फल हो सै, जो करामात दुखिया की

‘लखमीचन्द’ कहै बेदन जगी, मैं धोखें मैं गई थी ठगी
थारे संग कैसे होण लगी मुलाकात दुखिया की