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मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा / लखमीचंद

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मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा
मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा

लाग्या मेरै कंगाली का नश्तर, सूरा के करले बिन शस्त्र
तनै टूम ठेकरी गहणा वस्त्र सब सिंगार चाहिएगा
एक रत्न जड़ाऊ नौ लखा गळ का हार चाहिएगा

मेरे धोरै नहीं दमड़ी दाम, दुख मैं बीतै उमर तमाम
तू खुली फिरै बच्छेरी तनै असवार चाहिएगा
एक मन की बूझण आळा तनै दिलदार चाहिएगा

मैं बुरा चाहे अच्छा सूं, बख्त पै कहण आळा सच्चा हूं,
मैं तो एक बच्चा सू तनै भरतार चाहिएगा
ना बूढ़ा ना बाळक मर्द एक सार चाहिएगा

मेरै धोरै नहीं दमड़ी धेला, क्यूं कंगले संग करे झमेला
तनै मानसिंह का चेला एक होशियार चाहिएगा
वो ‘लखमीचन्द’ गुरू का ताबेदार चाहिएगा