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निमंत्रण / प्रताप सहगल

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हम
बच्चे को
उसकी आंख से नहीं
मनोविज्ञान की आंख से देखते हैं
समझना चाहते हैं
समझना चाहते हैं उसे मनोविज्ञान की ही आँख से.
मनोविज्ञान
एक किताब है
और बच्चा
एक ज़िन्दा तेज़ बहाव
बहा ले जाता है किताब
और दो शिशु हाथ
अधखुले दरवाज़े से झांककर बुलाते हैं
आओ!
मुझे मेरी ही आंख से पढ़ो।

1984