Last modified on 14 अक्टूबर 2013, at 10:49

शराब पीने के बाद / प्रताप सहगल

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:49, 14 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह=आदि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हो सकता है
आप दो-एक पैग पीकर
दिन भर की थकान मिटाना चाहें
या किसी तनाव से
मुक्ति पाना चाहें

हो सकता है
आप दो-एक पैग पीकर
कैबरे के लिए जाना चाहें
या ढूंढना चाहें श्रद्धानन्द मार्ग पर
कोई व्यवस्थित-सी जगह

यह भी हो सकता है
कि आप दो-एक पैग पीकर
कोई बिजनेस डील जमा लें
या डिस्काथेक्यू में किसी
सुन्दरी की मनपसन्दीदा जगह पर
हाथ लगा लें
यह सब या और भी
बहुत कुछ हो सकता है
आप यकीन करें
बोतल की कसम है आपको
मैं दो-एक पैग पीने के बाद
ज़रूरत से ज़्यादा बहकने लगता हूं
तब मुझे नहीं नज़र आता चांद
न ताज
न महसूस होती है रोमानी हवा
न छूती है जिस्म को फूलों की गन्ध
सच मानें
इसलिए ज़रूर सच मानें
कि मैं यह कविता
शराब पीने के बाद लिख रहा हूं.
दिन भर शायद रहूं बेखबर
पर बाद इसके
तैरने लगती हैं मेरी आंखों में
टपकती झोंपड़ियां
खाली बर्तन
फुटपाथों पर
सटे-सटे लोग
पुलों के नीचे बढ़ते परिवार
ईमान का ठेका लिये लोगों का
कस्बाई पत्रकारों पर अत्याचार
धर्म के रोशन बल्ब में
मरते-मारते लोग
मत्स्य-न्याय की तरह
आज भी
आदमी लगाते भोग.
आखिर कौन-सा पड़ाव है
आदमी होने का पड़ाव
आपने तो नहीं पी!
आप ही बताइए!
मुझे कोई रास्ता सुझाइए!
देखिए, यूं ही न टालिए मेरे सवाल
यह सवाल मैं पीने के बाद कर रहा हूं
यह कविता मैं शराब पीने के बाद लिख रहा हूं।

1984