भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परलै री घड़ी / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:45, 15 अक्टूबर 2013 का अवतरण
थारी
ऊजळी हथाळियां मांय
नीं होवैला
पुन्न
पथरीजियोड़ी आखियां
दीखैला
नरक रौ बारणौ
अथाह जळ मांय
नीं लाधैला
थनै कोई नाव,
जद
आय ऊभैला
आखौ कडूंबौ
काळौ लेय
आलोप होय जावैला
दूजा सगळा रंग
खोसीज जावैला
थारै सूं
थारा सपना
थारी पांखां
थारौ आभौ
परलै री
उण घड़ी मांय
थूं
कीं नी बचाय सकैला मां