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थारी चिरळाट / अर्जुनदेव चारण

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थारी चिरळाट
जागै सुरसती
रचण लागै साम
सांसां सूं
पीड़ पीवती पीढियां
मांगै नुंवौ छन्द
मां थनै
फेरूं बिलखणै पड़ैला