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प्रश्नचिह्न / शशि सहगल

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अब तो
हर चाह और हर प्रस्ताव के
आगे लग गये हैं
बहुत बड़े प्रश्नचिह्न
इन लम्बाकार प्रश्नचिह्नों
को ढोते हुए
कहीं प्रतिक्रिया देते और
कहीं रोते हुए
सब कुछ जैसे
जीने की प्रक्रिया का अंग लगता है।