आस जगा'र राखो / जितेन्द्र सोनी

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मन मांय सदा आस जगा'र राखो
कुंदन बणने सारूं खुद ने तपा'र राखो

आराम मांय नीं मिले जिनगाणी रो सुख
ईं री साची पिछाण फगत पसीने स्यूं राखो

सो'रै राह पर हुवै सदा ही कांटा
उतार चढ़ाव मांय महकता गुलाब राखो

इतिहास रचण आळा नीं मुड़े मारग स्यूं पाछा
थे भी मारग में पगां रा निसान बणा'र राखो

बुलबुले तरियां छोटी सी जिनगाणी पण
इरादां रै सूरज री ईं पर सतरंगी छाप बणा'र राखो

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