भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस जगा'र राखो / जितेन्द्र सोनी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन मांय सदा आस जगा'र राखो
कुंदन बणने सारूं खुद ने तपा'र राखो

आराम मांय नीं मिले जिनगाणी रो सुख
ईं री साची पिछाण फगत पसीने स्यूं राखो

सो'रै राह पर हुवै सदा ही कांटा
उतार चढ़ाव मांय महकता गुलाब राखो

इतिहास रचण आळा नीं मुड़े मारग स्यूं पाछा
थे भी मारग में पगां रा निसान बणा'र राखो

बुलबुले तरियां छोटी सी जिनगाणी पण
इरादां रै सूरज री ईं पर सतरंगी छाप बणा'र राखो