भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्त उड़ान / शशि सहगल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:30, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गैस के गुब्बारे को हवा में उड़ते देखा
मैं अह्लादित होती हूँ।
उसकी उड़ान
अहसास कराती है मुझे भी
आज़ाद होने का।
झटके से ऊपर उठना चाहती हूँ
तो, ज़ोर का झटका लगता है।
गुब्बारा मैं भी हूँ
उड़ने से मुझे रोकते नहीं तुम
उड़ूँ चाहे जितना भी ऊँचा
पर शर्त यह है
डोर का छोर
बाँधे रहोगे तुम
अपनी उँगली में।