भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिसकियां / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण
ठौड़-ठौड़ पाटै
धरती रा बुसबुसिया
इण चांदणी रात मांय।
उपजै है दर्द !
चांद खुद गीत है चांदणै रौ अंधेरै मांय
थब्बीड़ा खांवतौ साव ऐकलौ
चांद नै देखतौ आदमी
नीं हुवै ऐकलो !
म्हूं फेर देख्यौ आज चांद !