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सरण / प्रमोद कुमार शर्मा

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जणा करै कोई सागीड़ौ सो बिलाप
तद खुलै है बीं रौ द्वार!

जठै जा‘र आपां
पावां खुद नै निरवाळा!
हुवै आपणी हार!
अनै जको हारै
बो उतर जावै पार!