Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 09:39

कवि भाई / मदन गोपाल लढ़ा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कवि भाई !
कींकर धिकैला इण भांत
सबदां सूं बाथेड़ो
आव सांभ‘र बरतां
मोती मूंघा हरफ
नींतर मोळ पड़ जावैली
कविता री ताकत।

कवि भाई !
बिड़द-बखाण छोड‘र
कोथळी सूं काढ़णा पडै़ला सबद
तपाणां पडै़ला बां‘नै
सांच री आंच में
बिसरणी पड़ैला
वाह-वाह री आस
जद ई निभैला सावळ
कवि धरम ।

कवि भाई !
उणियारां नै जोवणो छोड़‘र
अंतस में उतरणो पडै़ला
गूंजता गीतां सागै
मून री पीड़ पण
मांडणी पडै़ला
होठां री हंसी जागै
सुध लेवणी जरूरी है
मूढ़ै मांयलै छालां री।

कवि भाई !
चोखी कोनी
घणी उंतावळ
कविता लिखणै सूं पैलां
कविता नै जीवणो पड़ैला।