भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारै पातीं री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हनैं दिनूगै उठतां पाण
माचै री दावण खींचणी है।
पैलड़ी तारीख नै हाल सतरह दिन बाकी है,
पण बबलू री फीस तो भरणी ई पड़ैला।
जोड़ायत सागै एक मोखाण ई साजणो हुसी
अर कालै डिपू माथै केरोसीन भळै मिलैला।
म्हैं आ ई सूणी है कै
ताजमहल रो रंग पीळो पड़ रैयो है इण दिनां।
सिराणै राखी पोथी री म्हैं
अजैं आधी कवितावां ई बांची है।