भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इण रिंधरोही / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
पड़तख सांच सूं
नटती बगत
उण नीं सोच्यो
कै म्हारै अंतस रै अंधारै में
हेत रा दिवला
चसाया कुण हा।
कांई ठाह कींकर
बिसरा देवै लोग
सोराई सागै
आपरै काल नै।
पण म्हारा जीवड़ा !
थूं किंयां धिकैला
इंयां गळगळो हुय‘र
इण रिंधरोही।