Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 11:24

मनगत रै कैनवास माथै / रवि पुरोहित

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आ रे साथी
थनैं दिखाऊं
मनगत रो संसार,
जूण-जूझ सूं कळकळीजती
जिंदगाणी रो सार !
घालमेल जीवन रंगां में
धोळा मांडूं काळा दिखै,
हेत-नेह रै मारग बगतां
पग-पग मिनखपणौ अबै बिकै ।
अरथ लीलग्यो अपणायत नैं
रिस्ता जाणैं हुयो बौपार
मुंहडै आगै हेताळु जग
मांय-मांय ई जङ बाढै
लारै भूंड-चाळीसा बांचै
सैंमुहडै बत्तीसी काढै ।
जीवन रंग अजब है साथी
घणो तङफावै मांयली मार !
अपणायत री कोमळ धरती
बीज आम रो बोऊं,
तळतळीजूं नफरत लपटां
भळै कोई नैं खोऊं
लोक रै अखबारां बिरवो
आकङो बण ज्यावै,
साथी म्हारा बखत देख थूं
कूङ साच नैं खावै !
किण नैं देऊं दोस बैलीङा
जीवन अपरम्पार,
जूण जूझ सूं कळकळीजती
जिंदगाणी रो सार ।