भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊजड़ चूल्हां री राख / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गांव रै पगाणै
एक गांव
उठाऊ गांव
जकौ का‘ल उतरयौ
अर आज लदग्यौ

नीं उतरती बेळा मनवार
नीं लदती बेळा
आंख हुयी
गीली किणीं री

पण, ऊजड़ चूल्हां री
राख उडांवतौ बायरौ
भटकतौ विजोगी-सो लागै।