भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इब कठै बड़ै / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:59, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
सावण लागग्यौ
झांझळी चालै
धरती रै पेट पडण नै उडीकै
हांडियां में पड्यो बीज
तीन पड़ग्या
चोथौ त्यारी करै
आभै में बादल नीं
देखणियां री आंख्या में डब्बा मंडै
आथण-दिनगै चूंतरियां पर
सोगी-सा किरसा बतळावै-
तीन तो
ओखा-सोखा तोड़ दिया
ओ किंयां टूटसी ?
दो पीसा लेय‘र
सगळां सूं काणां पड़ग्या
पण पार कोनी पड़ी
भौमी हाथां सूं तिसळ
आढ़तियां रै खतगी,
बैकां में जा बड़ी
सगळां बारणां मुंदग्या
मिलगत रा/इब कठै बड़ै
बैरण छांट कोनी पड़ै।