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सुरसत नैं अरज / रावत सारस्वत

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किण नै बिड़दाऊ ए सुरसत किण रो जस गाऊ
किण नैं म्हारोड़ा गीतां जुग-जुग पूजवाऊं, अमर बणाऊं

वाणी तूं दीन्ही ए मायड़, किरपा तूं कीन्ही
वाणी रै मोत्यां किण री माळ पुवाऊं, हार सजाऊं

धरती लचकावै कुण वो, आभै नैं तोलै
सातूं समदां री लहरां जिण री जय बोलै
इसड़ो नरसिंह बतादे जिण रो जस गाऊं, जिण नैं बिड़दाऊं

लिछमण सी झाळां जिण री हणवंत सी फाळां
रघुवर सा बाणां जिण रै परळै री ज्वाळा, चण्डी विकराळा
इसड़ी रामायण वाळो राम मिलादे ए मायड़ जिण नैं पुजवाऊं

जिण रा होठां पर सुर रा समद हिलोळै
जिण रा बैणां में गीता ज्ञान झिकोळै
इसड़ो सुद र सण वाळो स्याम दिखादे ए जामण जिण रो जस गाऊं

बलमीकी नावूं मैं तो, द्वैपायन ध्याऊ, तुळसी मनाऊ, सुर रो सूर बुलाऊं
जिण री लीला रा सौ-सौ छन्द रचाऊं
किण नैं बिड़दाऊं ऐ सुरसत किण रो जस गाऊं