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घर में रमती कवितावां 4 / रामस्वरूप किसान

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म्हारी छात रौ-बोझ
भींतां पर कोनी
टगां पर है

साची पूछौ तो म्हारै-
पगां पर है

बरसां सूं
सिर पर चक्यां खड़यौ हूं
म्हैं छात।