भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में रमती कवितावां 19 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टपकती छात तळै
बर्तणां रौ संगीत
कूंट मांय दुबक‘र
सारी रात एकली सुण्यौ
म्हारा मीत

अब तो आज्या परदेस सूं
चौमासौं नीं कटै।