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घर में रमती कवितावां 25 / रामस्वरूप किसान

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जुदाई रै
गुस्सै में
बावळो आंगणौं
फैंकतो रैवै
भौत बार
बेकार चीज
छात पर

पण छात
छाती देखौ
हांस‘र
सो कीं कबूलै।