भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर में रमती कवितावां 28 / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
म्हैं, बां रै
घर में
बड़ तो गयौ
पण
निकळण खातर
हेलौ मारणौं पड़यो
घर में के
चूंध्या करै आदमी ?