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रूकमणीजी / सत्यप्रकाश जोशी

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रूकमणीजी म्हारै कांई लागै ?
ल्होड़ी सोक ?
ना रे ना ।
बैनड़ली ?
ना रे ना।
कठै वे जदुकुळ रै राजा री रांणी
अर कठै म्हैं
गोकळ गांव री गूजरी स्यांणी !

वे हीरा जड़िया सिंघासण माथै,
बैठै द्वारकाधीस रै साथै,
अर म्हैं जमना रै कांठै
कुंज कुंज में
कांन्ह रै हींगळू पगल्यां नै
ठौड़ ठौड़ पूजती फिरूं,
उण री प्रीत रा मीठा गीत गाती फिरूं,
समाज वांनै साथण रौ परवांनौ सूंप्यौ,
म्हनै जणौ जणौ टोकी।

पण जद
खांडव बन री लाय बुझाय
म्हारौ कांन्ह
कुसळखेम निकळ आयौ
तो उणरै दाझ्योड़ा फालां माथै
पलकां कुण सहळाई ?
आंसुवां रौ लेप कुण कीनौ ?
जद काळीनाग नै नाथण
कांन्ह जमना में चिमकी मारी
तो उणरी कुसळ कांमना सारू
देई-देवतां नै
रातीजगा री बोलवां कुण बोली ?

जद कांन्ह
गोरधन रा बोझ सूं
डिगमिगावतौ हौ
तौ उणरा वारणा लेवण रै मिस
कुण पगां माथै ऊभौ रह्मो ?
अंधारी डगर में
बिजळियां रै कड़कै
मेघां रै घरणाटै
हिरणी रै सावक ज्यूं डरियाड़ो
कांन्ह नै
छाती सूं लगाय
आंचळ में कुण ढांपियौ?

म्हैं कांन्ह री साथण हूं,
कै मां हूं, कै बै‘न हूं,
कै बहू हूं, कै वायली हूं,
म्हैं खुद नीं जांणूं तौ कांई बताऊं!
पण रूकमणीजी तौ कोरी परणी
नीं बै‘न, नीं साथण, नीं वायेली,
म्हारी वांसूं कांई बिरोबरी!