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इन्कलाब री आंधी / रेंवतदान चारण

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अंधार घोर आंधी प्रचन्ड आ धुंआधोर धंव-धंव करती
 आवै है उर में आग लियां, गढ कोटां बंगळां नै ढहती !
बैताळ बतूळौ नाचै है , जिण रै आगै संदेस लियां
राती नै काळी पीळी आ , कुण जाणै कितरा भेख कियां
वे संख वजै सरणाटां रा , कोई गीत मरण रा गावै है
डंकै री चोट करै भींता , बायरियौ ढोल बजावै है
विकराळ भवानी रमै झुम ,धरती सूं अंबर तक चढती
अन्धार घोर आंधी प्रचंड ,आ धुंआधोर धंव-धंव करती
आवै है उर में आग लियां, गढ कोटां बंगळां नै ढहती !
नींवां रै नीचै दबियोडी,जुग-जुग री माटी दै झपटौ
ले उडी किलां नै जडामूळ, पसवाडौ फ़ेर लियो पलटौ
तिणकै ज्यूं उडगी तरवारां,गौचे रौ रुप कियौ भालां
रुंखा रै पत्तां ज्यूं उड्गी, वै लाज बचावण री ढालां
वा पडी उखरडी मे बोतल,मद पीवण रा प्याला उडग्या
मैफ़िल रा उडग्या ठाठ -बाट,वै महलां रा रखवाळा उडग्या
वै देख जुगां रा सिंघासण, रडबडता पडिया ठोकर मे
वै ऊंधा लटकै अधरबम्ब, नहिं झेलै अम्बर नै धरती
अन्धार घोर आंधी प्रचंड ,आ धुंआधोर धंव-धंव करती
आवै है उर में आग लियां, गढ कोटां बंगळां नै ढहती !
आंधी आ अजब अनूठी है, डूंगर उडग्या सिल उडी नही
सिमरथ वै ढहग्या रंग-महल,हळकी झूंपडियां उडी नही
उड गयौ नवलखौ हार् देख, मिणियां री माळा पडी अठै
उड गई चुडियां सोनौ री , लाखां रौ चुडलौ उडै कठै
उड गया रेसमी गदरा वै , राली रै रंज नही लागी
आ फ़िरै कामेतण लडाझूम ,लखपतणी मरगी लडथडती
आवै है उर में आग लियां, गढ कोटां बंगळां नै ढहती !
अंधकार मत जांण बावळा, इंकलाब री छाया है
इण भाग बदळिया लाखां रा, केई राजा रंक बणाया है
रे आ वा काळी रात जका, पूनम रौ चांद हंसावै है
रे आ वा वाल्ही मौत जका,मुगती रौ पंथ बतावै है
रे आ वा भोळी हंसी जका,के मरती वेळा आवै है
इण धुंआधार रै आंचळ मे इक जोत जगै है जगमगती
अंधार घोर आंधी प्रचंड ,आ धुंआधोर धंव-धंव करती
आवै है उर में आग लियां, गढ कोटां बंगळां नै ढहती !