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कोप भवनमे कनियाँ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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रूसलि किए सूतलि छी बनबू ने कनेक चाह अय।
मिथिला हम चललहुँ, टाटानगरीसँ आइ अय।।
अहाँ जौं एना रहब तँ हम कोना जीअब,
सदिखन कनिते-कनिते व्यथे जहर पीअब।
एना अहाँ रूसब तँ हम कऽ लेब दोसर सगाइ अय,
मिथिला ...........।।

अहाँक रूप देखिते कामदेवो कानैत छथि,
"मृगनयनी" के ओ उर्वशी मानैत छथि ।
बिहुँसल मादक घुघना लागै लौंगिया मिरचाइ अय,
मिथिला ..............।।

छगनलाल ज्वेलरीसँ कनकहार लायब,
आ जुरैन पूनमकेँ, पार्कमे घुमाएब।
हहरल मनक तृष्णा, नहि बनू हरजाइ अय,
मिथिला ............।।

ऊठू प्रिये, अहाँ जल्दी नहाबू,
कोप भवनसँ उठि कऽ लगमे आबू ।
मंदहि मुस्की मारू, हम अनलहुँ अछि मलाइ अय,
मिथिला ...........।।