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मन रे भज ले सीताराम / महेन्द्र मिश्र

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मन रे भज ले सीताराम/तेरा बनि जइहें सभ काम।
दस दरवाजा चोर लगे हैं तू करता आराम।
धन दउलत सभी लूट रहे हैं बचीना कउड़ी दाम/मन रे।
सुन्दर देह देखि जन भूलो ई तो हड्डी चाम।
एक दिन कागा खाई विलसिहें रहिहें नेकी नाम/मन रे।
सुत दारा परिवार मित्र सभी कोई ना अइलें काम।
मतल अटारी सभी यहीं छूटीं संगे ना चली छदाम/मन रे।
द्विज महेन्द्र मरू साधु सेवा सुमिरन आठो याम।
जनम-जनम के पातक छुटिहें अंतमिली सुरधाम।
मन रे भज ले सीताराम।