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बँसहा चढ़ल शिव ठाढ़े दुअरवा / महेन्द्र मिश्र

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बँसहा चढ़ल शिव ठाढ़े दुअरवा,
से मुहवाँ में एकहू ना दाँत हो लाल।
कि मुहवाँ में एकहू ना दाँत हो लाल।
डिमिकि-डिमिकि डिम डमरू बजावे लें,
से ताकेलें नयन घुरूमाई हो लाल।
से ताकेलें नयन घुरूमाई हो लाल।।
भांग धतूर बेल पतई चिबावे,
से घरे-घरे अलख जगावे हो लाल।
से घरे-घरे अलख जगावे हो लाल।
अइसन बउराह बर के गउरा न देहब,
से बलु गउरा रहिहें कुँआरी हो लाल।
से बलु गउरा रहिहें कुँआरी हो लाल।
नारद बाबा के हम का ले बिगड़नी,
से बसलो भवनवाँ उजाड़ेलें हो लाल।
से बसलो भवनवाँ उजाड़ेलें हो लाल।
अपने भिखारी बेल पतई चिबावेलें,
ऊ अनका के कइसे धनवाँ देवेले हो लाल।
ऊ अनका के कइसे धनवाँ देवेले हो लाल।
कर जोरी बोलली गउरा सुनऽ मोरा माई
कि हमारा करम में इहें दूल्हा हो लाल।
कि हमारा करम में इहें दूल्हा हो लाल।
निरखे ‘महेन्दर’ दूल्हा भेस बनावेलें,
से हँसि-हँसि मोहेलें परानवाँ हो लाल।
से हँसि-हँसि मोहेलें परानवाँ हो लाल।