Last modified on 21 अक्टूबर 2013, at 15:02

फिरि जा भरथ भवनवाँ हो / महेन्द्र मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिरि जा भरथ भवनवाँ हो रामा मानो कहनवाँ।
हमरो करम में बन ही लिखी है छुटि गइले राजभवनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
सब मातुन की सेवा करना गहना ताहीं के चरनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
आवो गले लग जा मोरा भइया कब ले दू होइहें मिलनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
द्विज महेन्द्र जिव मानत नाहीं देखहुँ के भइले सपनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।