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मूल्यांकन / शशि सहगल

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कक्षा में विद्यार्थियों को
मेंढकों और चूहों का
डाइसेक्शन करते देखती हूँ।
पास पड़े पैड पर
शीघ्रता से करते नोट
और लिखते जाते
उनके दिल के धड़कने की गति
हृदय का साईज़
और भी बहुत सारे तथ्य।
निर्धारित नियमों की कसौटी पर
खरा उतरने की जी-जान से तत्पर
उस जीव की हर शिरा को समझ
समझाने को उत्सुक।
देखते देखते दृश्य बदलता है
और मैं
चूहे के स्थान पर
ट्रे में खुद को
पिनों से जकड़ा पाती हूँ।
विचारमग्न विद्यार्थी
झुका है मेरे ऊपर
उसे डाइसेक्शन करना है
मेरे दिल और दिमाग का
चीर-फाड़ करनी है
मेरी सोच की
और दिखाना है
मैं कितने प्रतिशत सही औरत हूँ?
ट्रे में चिपकी मैं
तृतीय पुरुष सी
कर रही हूँ प्रतीक्षा
अपने ही डाइसेक्शन के परिणाम की।
जब से होश संभाला है
अपने आस-पास की दुनिया को जाना है
खुद को उतना ही उलझा हुआ पाया है
तब कैसे करेगा यह विद्यार्थी
मेरे विचारों की परख?
मन की परतों को
तह दर तह खोलना होगा उसे
तभी तो
तल तक पहुँच पायेगा।
चाहती हूँ, मुझे बताये वह
कि मैं
कितने प्रतिशत पत्नी, माँ और बेटी हूँ।