1.
मुरली मुकुन्दकेर पदपर पहिने शिर नमबै छी
तदन्तर शारदा-गणेशक चरणकमल विनबै छी।
कादम्बरी कैथिलीमे हिनके भरोस बनबै छी
करिहथि विघ्न हंटाय पूर्ण ई हाथ जोड़ि मनबै छी।।
2
वेत्रवतीकेर तट पर सुन्दर ‘विदिशा’ नामक नगरी
जकर विभवसँ लज्जित सुरपुर-राज तकै छथि डगरी।
पुण्यवान तेजस्वी सबहिक एक स्वर्ग-सन आकर
इन्द्रधनुष सन रत्नजोतियुत जनमन-नयन-सुधाकर।।
3.
जतय तुच्छ जनहुक घरमे लखि-मणि-मोती केर पूरे
लाजे से कुबेर बसला कैलासशृंग पर दूरे।
सोना चानिक गोटीसँ कन्या सब खेलि करै छल
शाल दोशाला फाड़ि-फाड़ि कनिञ-पुतरा बनबै छल।।