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रूपहली शाम / नीरजा हेमेन्द्र

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सुबह फिर धूप निकलेगी
गुलमोहर के फूल फिर वहाँ
खिल जायेंगे
जहाँ, मैं और तुम मिलेंगे
पंक्षी शाम को लौटेंगे
नीड़ में
तुम भी आ जाओगे
मुझे अपने आगोश में
छुपा लेने के लिये
लेकिन तुम नही जानते
मैं सुबह की रोशनी से
कितनी भयभीत रहने लगी हूँ
हर सवेरा मुझे
कमजोर बना देता है
मेरे अन्दर
अविश्वास भर जाता है
ये अविश्वास मेरे प्रति है
या तुंम्हारे
ये मैं नही जानती
मै सुबह होने के साथ
शाम की प्रतीक्षा करने लगती हूँ
जब तुम एक रूपहली शाम को
लौटोगे।