भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिथ्या / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ ढ़ल रही है
धीरे धीरे धीरे।
पीले गेंद-सा सूरज
वृक्षों के पीछे गिर गया है
ईंट मजदूरों की बस्ती में
झोपड़ी से उठ रहा है धुआँ
पक रहे हैं सपने
अधनंगा बच्चा
मुर्गियों के पीछे/भगता है
श्वेदकणों से लथ-पथ युवक
दालान में फैली
लकड़ियों को समेट रहा है
समेट रहा है इच्छायें
ढ़ीली चारपाई पर
बैठे हुए बूढ़े पिता के
झुर्रीदार चेहरे पर
चिपकी हुई
निस्तेज आँखें
मटमैले आसमान में
सपनों को ढूँढ रही हैं।