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आत्म साक्षात्कारसा कुछ / नीरजा हेमेन्द्र

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आत्म साक्षात्कार-सा कुछ
मैंने स्वयं को देखा है
देखा है प्रथम बार, आज
पूछा है अपना परिचय
पूछा है अपना पता
मैं कहाँ थी? क्या था मेरा परिचय?
मैंने स्वयं से पूछा है प्रथम बार
मैं दौड़ती रही रेगिस्तानों में
मेरे इर्द-गिर्द थीं मृग-मरीचिकायें
मैं भागती रही
रेत में
बनती-बिगड़ती पगड़ड़ियों पर
गिरती-उठती/ दौड़ पड़ती थी पुनः
आज मैं हूँ शान्त, क्लान्त
मैंने तय किया है मीलों विस्तृत
असीम, अनन्त रेगिस्तान
पूछ रही हूँ अपना परिचय
स्वयं से
मैं क्या थी? क्या हूँ?
ढूढूँगी अपना परिचय
गर्म रेगिस्तानों में संतृप्त
मरू़द्यानों की भाँति।