भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाँ, यहाँ आकाश / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाँ, यहाँ
आकाश बिलकुल पास में है
 
दिख रही है बर्फ
तारे भी अँधेरे में
इधर खिड़की पार
आ रही है कहीं नीचे से
किसी संतूर की झंकार
 
और
सोते पर बना पुल पास में है
 
महानगरी से निकलकर
आए हैं हम
दूर हैं सब शोर
यहाँ जो पगडंडियाँ हैं
उम्र का है
वहीं अंतिम छोर
 
साँस जो
हो रही आकुल, पास में है
 
उधर हैं सप्तर्षि बैठे
झील तट पर हाथ जोड़े
और उनके ठीक नीचे
चीड़ वन हैं धुंध ओढ़े
 
बह रही
जो नदी छुलछुल, पास में है