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तैर रहे हैं नाग नदी में / कुमार रवींद्र
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तैर रहे हैं नाग
नदी में
सुनो, धार में कैसे हम उतरें
फूल सिराये गये यहीं पर
पिछले सपनों के
इसी घाट पर चिह्न मिले हैं
हमको अपनों के
रेती भी है
हुई दलदली
उसमें, साधो, कैसे पाँव धरें
जिनसे पार गये थे
नावें वे टूटीं सारी
खेवनहारे भी सारे ही
हैं मिथ्याचारी
पेड़ किनारे के भी
घायल
बिन पतझर ही रह-रह रोज़ झरें
पावन जल था
नागों ने कर दिया विषैला है
ज़हर हवाओं में भी, देखो
कैसा फैला है
वक्त हुआ है
यह अपराधी
उससे,साधो, कैसे हम उबरें