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सुनो, सुबह से / कुमार रवींद्र

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आमदरफ्त शुरू हो जाती
              इधर गली में
              सुनो, सुबह से
 
पहले आता है ब्रेडवाला
उसके पीछे-पीछे सूरज
फिर रिक्शे पर लदे- फँदे
जाते हैं बच्चे
होता अचरज
 
दिन पडोस में होता है
            आरंभ कलह से
 
अभी निकलकर गईं
इधर से कई बकरियाँ
उनके पीछे
उन्हें हाँकती हुईं लड़कियाँ
 
हँसा खाँसकर बूढ़ा ठरकी
              किसी वज़ह से
 
कई दूधवाले जाते हैं
इसी गली से होकर आगे
मोटरबाइक पर लड़के भी
दिन-दिन भर फिरते हैं भागे
 
रस्ता है नजदीक मॉल का
               इसी जगह से