Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 23:16

सुनो इन दिनों / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनो, इन दिनों
सच में, साधो
दुखी बहुत हैं गीत हमारे
 
वही-वही हैं दुर्घटनाएँ
रोज़-रोज़ ये आहत होते
जहाँ कहीं भी वे होते हैं
इनको मिलते बच्चे रोते
 
माँ के आँचल में भी
इनको
मिले सिर्फ़ आँसू ही खारे
 
कल ये केसर-घाटी में थे
घाव लगा इनके सीने में
दुनिया भर के हत्यारे हैं
छिपे मिले घर के जीने में
 
चीख रहे संतूर
मिले हैं
लहू-नहाये हमें शिकारे
 
नये मसीहे सिखा रहे हैं
राक्षस-कुल की मर्यादाएँ
गीत करें क्या
उन्हें दिख रहीं-
घर-घर व्यापीं हैं विपदाएँ
 
सूर्यवंश के
विरुद करें क्या
बाँट रहे हैं दिन अँधियारे