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कादम्बरी / पृष्ठ 21 / दामोदर झा

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24.
अपने धैर्यधुरीण छद्र ई व्याकुलता अछि
अपने सनक हृदय जनमल नहि शोक लता अछि।
यदि देवी नारीक स्वभावे नहि सहि सकली
शोकक भार असह्य हृदय धय कानय लगली॥

25.
बड़का बड़का मोछ राखि पुरुषहु मे सेसर
तँ अपने की कानि रहल छी हिनकर दोसर।
कोन कृत्य ई शुभकारक वा अशुभ निवारक
जे करपर मुख राखि आँखि निर्झर जलधारक॥

26.
सत्ये जँ सन्तति-विहीनतासँ अछि मन दुख
बुद्धि लगाउ धर्ममे, धर्में मिलय सकल सुख।
ब्राह्मणकें धनतोषि करू देवक आराधन
सलिलाशय खुनबाय करू किछ मन्त्रक साधन॥

27.
नहि अछि कठिनो कोनो फल सागरके
जे नहि भेटय अहाँ सनक धर्मक आगरके।
बड़-बड़ काज असम्भव तपसँ साधथि सज्जन
अहूँ सतत व्रत करू लगहिमे छथि पंचानन॥

28.
ई शुकनासक बात जखन श्रुतिपुटमे पैसल
हुनके सब सिद्धान्त हृदयमे घर कय बैसल।
स्वस्थ जकाँ दम्पती तुरत जल लय मुह धोलनि
भोजल वा जलपान आन दिन सन सब कयलनि।