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कादम्बरी / पृष्ठ 45 / दामोदर झा

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14.
स्वर्गक राजा सम वैभवमय गृहस्थ जीवन केर
स्ब पओलनि नहि पओलनि दरसन केवल तनय वदन केर।
बहुत दिवसपर हमहीं कन्या एक अभागलि भेलिअनि
फूटल हमर कपार जाहिसँ हुनकहुँ वड़ दुख देलिअनि॥

15.
नहि सन्तान छलनि ते हमरो जन्म पुत्र सम बुझलनि
ढोल-ढाक ओ नाच-गानसँ बड़का उत्सव कयलनि।
चन्द्रक वंश क्रमागत हमरो देहकान्ति ई देखलनि
नाम महाश्वेता विचारि क’ वड़ दुलारसँ रखलनि॥

16.
से हम जनक भवनमे कल-रव वीणा जकाँ उचरिते
एक बन्धु केर कोरासँ आनक कोरा संचरिते।
सुख-दुख द्वेष-राग जोड़ा केर प्रभुतासँ बहरायल
बाल विनोदहि पेशल सुखमय शैशव काल बितायल॥

17.
खेलि कूदि यावत नहि उर शिशुता चापलहिं अघयलहुँ
तावत रसास्वाद करबा लय युवा अवस्था पयलहुँ।
काम विकारक एक निकेतन सब विलास केर आकर
होइ अछि जे फूलहुसँ कोमल जीवन केर कुसुमाकर॥

18.
हास विलास लास्यमय जीवन सखिगण संग बिताबी
वीणा वेणु मृदंग मुरज गान्धर्व कला सुख पाबी।
रंग-मंचपर नव-नव नाटकसँ आनन्द बढ़ाबी
कौखन मातु पिताके निज नैपुण्ये सुख पहुँचाबी।