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कादम्बरी / पृष्ठ 49 / दामोदर झा

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34.
एतबा कहि अपने हाथे ओ हमर कान पर रखलनि
अपना आंगर परसक सुख दय मन के मोहित कयलनि।
हमर कपोलक परस पाबि हुनि कम्प देह भरि पसरल
हमरा मुखपर आँखि हुनक जपमाला करसँ ससरल॥

35.
बीचहिंमे हुनकर माला झट हाथ अड़ा क’ लोकल
छमछम कय ऐंठैत पहिरलहु कामानल तनु झोंकल।
तावत छाताबाली हमरो बात वज्र सन कहलक
छथि नहाय अगुताइत माता चलक खबरि ई अनलक॥

36.
कहुना दृष्टि हँटा घुमलहु उरमे अभिलाषा रहले
तावत हुनक सखा हुनकापर रुष्ट भेल ई कहले।
मित्र, किये निज होश गमओलहुँ मन चपल पथ अनलहुँ
जपमाला ई हरने जाइछ सेहो अहाँ नहि जनलहुँ॥

37.
तखन आबि तमसाएलसन भए कहलनि चोरि करै छह,
नीक घरक बेटी सन लागह माला मुनिक हरै छह।
हमहुँ हँसि गरसँ बहार कय निज मोती केर हारे
लिअ अपन जपमाला कहि राखल कर कमलाकारे॥

38.
हमरा मुह पर दृष्टि हुनक छल बिनु देखनहिं लए लेले,
सखी गणहुँ देखल सबटा बुझि मन किछ लज्जित भेले।
सखी सभक देहक अवलम्बे सर नहाइ लए अयलहुँ,
एतय नहा माता संग तनु लय अपना भवन पहुँचलहुँ॥