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कादम्बरी / पृष्ठ 64 / दामोदर झा

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15.
ततय महाश्वेताके इन्द्रायुध निज जन करि लेखय
बहुत दिवस पर बिछुड़ल भेटल जकाँ नोर भरि देखय।
बीतल राति दिवसकर केर कर पसरल चारू पासे
चन्द्रापीड़ कयल प्रातक विधि अनतःकरण उदासे॥

16.
उठल महाश्वेता समाधिसँ बैसलि जा पाथर पर
चन्द्रापीड़ी निकटेमे छथि कुशक बनल स्ररतर पर।
भान मान नभ मण्डल केर सीढ़ी पर पयर धरै छल
आयल तखन तरलि का मुख छवि असफल भाव झरै छल॥

17.
तकरा सङ गन्धर्वयुवक एक सौम्य भाव छल आयल
दूनू आबि महाश्वेता केर पद पर माथ झुकायल।
आज्ञा पाबि लगहिंमे बैसलि पुछला पर पुनि बाजल
कादम्बरी कुशलसँ अछि परिवारो से अन्दाजल॥

18.
जे किछु कहलहुँ अहाँ कहै लय सबटा मन दय सुनलक
उत्तर तकर कहै लय वीणावाहक अपन पठओलक।
केयूरक अवसर लखि बाजल ओ प्रतिकूल गहै छथि।
जे किछु कहल तरलिका ई जा उत्तर तकर कहै छथि॥

19.
हमर अहाँक दुहू केर मानस भिन्न न कहिओ रहले
तखन परीक्षा किए करै छी जे ई अनुचित कहले।
अथवा हम उलहनक पात्र छी तप वन अहाँ चरै छी
सौध भवनमे सुख बिहरै छी हम अति घृणित करै छी॥