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कादम्बरी / पृष्ठ 68 / दामोदर झा

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35.
पकड़ल गरदनि जाय महाश्वेताके हृदय लगाबथि
बिछुड़ल दुहु सखि बहुत दिवस केर कथातीत सुख पाबथि
दुहुक हृदयमे दुहु छलि डूबलि बहु छन पुनि बहरायल
चन्द्रापीड़ उदेशि महाश्वेता चरित्र गुण गायल॥

36.
भारतवर्षक सार्वभौम छथि तारापीड़ महीपति
चन्द्रापीड़ तनय ई हुनके आयल छथि दैवक गति।
जहिखनसँ आयल छथि ई बिनु कारण मित्र गनल छथि
नव आगन्तुक रहितहुँ निज गुण अति परिचिते बनल छथि॥

37.
हिनका एतय बजा अनने छी सब जनके देखबै लय
रूप बपौती नहि गन्धर्वक सैह शास्त्र सिखबै लय।
हमरा सङ सौहार्द बढ़ल लखि अहूँ आन नहि बुझिअनु
कय आतित्य उदारभावसँ हिनक हृदय अपनबिअनु॥

38.
कादम्बरी चकित लोचनसँ देखथि राजकुमरके
जेना चकोरी स्वादि करै अछि पान सुधाकर करके।
ताही खूजल लोचन फाटक मनसिज भीतर पैसल
कादम्बरी हृदय नव कोमल घरमे सुखसँ बैसल॥

39.
चन्द्रापीड़हिं पहिने रत्नक सिंहासन बैसओलनि
तखन दुहू कोमल एके कुथा सुशोभित कयलनि।
संकोचे जड़मति भय बैसलि कादम्बरिहिं उठओलनि
प्रेरित कयल महाश्वेता हठि गृहाचार करबओलनि॥