भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 90 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 30 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर झा |अनुवादक= |संग्रह=कादम्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

15.
भिनसरमे किछ होश सम्हारल देखथि हमरा लगमे आनि
कहू पत्रलेखा, की समुचित कयल कुमर, ई कहलनि कानि।
नीक लोक केर काज इएह थिक प्रीति जोड़ि देलनि ठोकराय
हमहूँ वेश्यागृह नहि जनमल हुतवह देव शरीर जराय॥

16.
कहबनि हुनका सुखसँ रहता कय लेता दश पाँच विवाह
हमरा लय यमराज आब छथि हुनका तकरे की परबाह।
कहलहुँ हाथ जोड़ि हम देवी, छमा करू, नहि हुनकर दोष
आज्ञा जनकक बड़ भारी अछि से बुझि हुनको रखलनि तोष।

17.
जैखन अवसर हुनका भेटतनि अओता दौड़ि अहाँकेर पास
तनु लय गेल हेता उज्जयिनी अहिंक चरणमे मनक निवास।
धरू धैर्य अवसर प्रतिपालू मन घबड़ओने बड़ अछि हानि
धयलहुँ पयर हुनक ई कहि हम देहस्थिति लय कहलहुँ कानि॥

18.
कहुना उठि किछु क्रिया कर्म कय कयलनि शीतभवनमे वास
हमरहि रहथि हृदयमे सटने तनु तलफय मन भेल निराश।
गाल उपर मोतीमाला बनि नोर करै छल सतत बिहार
जँ सखि लगसँ दूर बिदा हो ओ बूझथि कयलक उपकार॥

19.
हमरहिसँ किछ किछ बजितो छलि हमरहि हाथ करथि आहार
हमरहि सेबे तनु धयने छलि हमही हुनकर प्राणाधार।
तमसायलसन एकदिन कहलनि सुनू पत्रलेखा, लग आबि
कुमर अहाँक बहुत दुर्जन छथि चौपट भेलहुँ परिचय पाबि॥