भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 139 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 31 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर झा |अनुवादक= |संग्रह=कादम्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

104.
पूछल मुनि जन मुनि रहितहुँ ई कामे किए व्यथित भय
नहि शरीरके बचा सकल धय धैर्य विकार मथित कय।
सुनि जाबलि महामुनि कहलनि नारी रजसँ केवल
पुण्डरीक जनमल छल ते ओ छलय हृदयसँ दुर्बल।

105.
एतबा कहिते पूर्व भागमे तम छल फाटल
पम्पा तीरक खग रातुक नीरवता काटल।
उठला मुनि जन सन्ध्यादिक नितकर्म करै लय
देवार्चन पितरक तर्पणो समाधि धरै लय॥